दर्दनाक विमान हादसा - 12-6-25
मीठे अरमानों को हम तो दिल में संजोए बैठे थे,
आशा की नैया में चढ़ मुश्किल हिचकोले सहते थे।
यूँ तो सब हैं व्यस्त यहाँ कुछ करने और कमाने
में.
उलझन रोज़ की सुलझाने और घर-परिवार चलाने में।
चंद अपनों से मिलने को हम आना-जाना करते थे.
सूनी अँखियाँ चमक उठें इस आशा में जा मिलते थे।
एक दिन प्लान बनाकर सारे बैठे उडनखटोले में,
जगत घूमने निकले लेकर खुशियाँ अपने झोले में।
कारवाँ में जुड़े सभी थे, लाद के अपनी
गठरी को,
कुछ आगे, कुछ पीछे थे, लीडर थे बाँधे पगड़ी को।
चलने लगा कारवाँ, देखो
अंधियारे ने घेर लिया,
आसमान में ज्वाला थी, उम्मीद ने भी मुँह फेर
लिया।
पंख लगाकर उड़ते पंछी,
मंजर ऐसा बदल गया,
आफत ऐसी बरसी पल में, कुनबा
कुनबा जल गया।
सुंदर जग छूटा धरती का,
सब जल, कोयला हो गया,
बचा एक इंसान उन्ही में, अचरज ये भी हो गया।
इंसाँ की ऐसी हिम्मत कि जग को करता मुट्ठी में,
पर कुदरत की ताकत ऐसी पल में मिलाती मिट्टी
में।
-विनोद कुमार